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राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना भारत में बच्चों की प्रतिभा, सृजनात्मकता, अभिव्यक्ति और नवाचार को पहचान देने के लिए शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है। इस योजना को अंग्रेज़ी में National Bal Shree Honour कहा जाता है। यह सम्मान उन प्रतिभावान बच्चों को प्रदान किया जाता था जो विभिन्न क्षेत्रों में रचनात्मक, अभिनव और उत्कृष्ट प्रदर्शन करते थे। इस लेख में हम इस योजना की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, चयन प्रक्रिया, पुरस्कार स्वरूप, प्रभाव और वर्तमान स्थिति का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।


पृष्ठभूमि एवं शुरुआत

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना की रूपरेखा सबसे पहले 1993 में तैयार की गई थी। इसके बाद इस योजना को औपचारिक रूप से 1995 में शुरू किया गया। योजना को संचालन-संबंधी जिम्मेदारी राष्ट्रीय बाल भवन (National Bal Bhavan) को दी गई थी, जो कि भारत सरकार के स्वायत्त निकाय के रूप में संचालित होती है।

यह योजना विशेष रूप से 9 से 16 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को लक्षित करती थी। इसका मुख्य लक्ष्य बच्चों में छुपी प्रतिभा को सक्रिय करना, उन्हें प्रेरित करना तथा उनके सृजनात्मक विकास को बढ़ावा देना था।

संसाधनों, माध्यमों, पुरस्कारों और चयन प्रक्रिया के माध्यम से यह राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना देश भर में बच्चों को प्रोत्साहन देने वाली एक प्रमुख पहल बनी। बाद में हालांकि इस पुरस्कार को सीधे तौर पर देना बंद किया गया तथा इसे अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों के समेकित स्वरूप में ले जाया गया।


उद्देश्य एवं प्रमुख विशेषताएँ

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना के अंतर्गत निम्न-लिखित प्रमुख उद्देश्य थे:

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना
राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना
  • बच्चों में सृजनात्मक अभिव्यक्ति (creative expression) को बढ़ावा देना — जैसे कि कला, विज्ञान, लेखन, प्रदर्शन-कला आदि।
  • बच्चों की प्रतिभा, नवोन्मेषी सोच और अलग दृष्टिकोण (innovative approach) की पहचान करना।
  • स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक चयन प्रक्रिया द्वारा क्षेत्रीय रूप से बच्चों को मंच उपलब्ध कराना।
  • पुरस्कार का रूप देने से बच्चों एवं उनके परिवारों को प्रेरणा देना कि व्यक्तिगत प्रयास एवं सृजनात्मकता से मान्यता मिल सकती है।
  • बाल विकास के क्षेत्र में एक सकारात्मक संदेश देना कि सिर्फ शैक्षणिक अंक ही नहीं बल्कि रचनात्मकता और नवाचार भी महत्वपूर्ण हैं।

इस तरह योजना सिर्फ “उपलब्धि” देने का माध्यम नहीं थी, बल्कि प्रक्रिया-उन्मुख थी — बच्चों को सोचने, बनाने, प्रस्तुत करने और समूह में काम करने के अवसर देती थी।


चयन प्रक्रिया एवं मानदंड

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना में बच्चों का चयन तीन स्तरों पर किया जाता था — स्थानीय (बाल भवन स्तर), राज्य/क्षेत्रीय स्तर और राष्ट्रीय स्तर। नीचे चयन प्रक्रिया और मानदंड को विस्तार से देखिए:

चयन की श्रेणियाँ

पहले यह बच्चों को निम्न श्रेणियों में भाग लेने का अवसर देती थी:

  • प्रदर्शनकारी कला (प्रदर्शन-कला) जैसे गायन, वादन, नृत्य, अभिनय।
  • सृजनात्मक कला (creative art) जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, क्राफ्ट-कार्य आदि।
  • सृजनात्मक वैज्ञानिक नवाचार (creative scientific innovation) — विज्ञान परियोजनाएँ, मॉडल्स, समस्या समाधान आदि।
  • सृजनात्मक लेखन (creative writing) — गद्य, पद्य, नाट्य संवाद आदि।

आयु-श्रेणियाँ एवं पात्रता

  • भाग लेने वाले बच्चों की आयु 9 से 16 वर्ष के बीच होती थी।
  • इस उम्रमें तीन उप-श्रेणियाँ थीं: 9-11 वर्ष, 11-14 वर्ष, और 14-16 वर्ष।
  • प्रत्येक बच्चे को अधिकतम दो बार (दो अवसर) केवल भाग लेने की अनुमति थी, और दूसरी बार भाग लेने पर उम्र समूह या श्रेणी अलग होनी चाहिए थी।
  • पहले पुरस्कार जितने वाले बच्चों को फिर से चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।

चयन प्रक्रिया

क्षेत्रीय/ज़ोनल स्तर: पूरे देश को विभिन्न जोनों में बांटा गया था (उदाहरण के तौर पर: उत्तर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, मध्य) और वहाँ ज़ोनल-कैंप आयोजित होते थे।

स्थानीय स्तर: बच्चे अपने नजदीकी बाल भवन या बाल केन्द्र में चयन प्रक्रिया हेतु भाग लेते थे।

राष्ट्रीय स्तर: चयनित बच्चों को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित चार-दिवसीय कैंप में बुलाया जाता था जहाँ विभिन्न परीक्षण, गतिविधियाँ एवं मनोवैज्ञानिक परीक्षण होते थे।

मूल्यांकन मानदंड

चयन में निम्न-मानदंड पर विचार किया जाता था:

  • मौलिकता (Originality) — काम में नया दृष्टिकोण।
  • नवीन दृष्टिकोण (Innovative approach) और बहुविचारी (Divergent thinking) क्षमता।
  • प्रवाह (Fluency) — विचारों की संख्या एवं विविधता।
  • लचीलापन (Flexibility) — विभिन्न दृष्टिकोण स्वीकारने की क्षमता।
  • विचारों का विकास (Elaboration) — सिर्फ विचार नहीं बल्कि उसका विस्तार।
  • रचनात्मक प्रक्रिया का अर्थपूर्ण परिणाम (Product) होना चाहिए।
  • समूह में काम करने की क्षमता (Effective functioning in group) तथा विश्लेषणात्मक एवं महत्वपूर्ण दृष्टिकोण।
  • चयन में गतिविधि-संबंधित उपकरण और मनोवैज्ञानिक परीक्षण दोनों का प्रयोग किया जाता था।

पुरस्कार स्वरूप एवं लाभ

जो बच्चे अंततः चयनित होते थे उन्हें निम्नलिखित पुरस्कार दिए जाते थे:

  • एक पट्टिका (Plaque) – सम्मान का प्रतीक रूप।
  • एक प्रमाण-पत्र (Citation/Certificate) – चयन का दस्तावेज।
  • नकद पुरस्कार (Cash prize) — उदाहरण के लिए 15,000 रुपये (किसान विकास पत्र के माध्यम से) का उल्लेख मिलता है।
  • साहित्य-संसाधन सेट (Literature set) जिसमें किताबें, CDs आदि शामिल थे।

इन पुरस्कारों के माध्यम से बच्चों को अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा मिलती थी। साथ ही यह उनके अभिभावकों, शिक्षकों एवं विद्यालयों के लिए भी एक सकारात्मक संकेत था कि रचनात्मक विकास को प्राथमिकता दी जा रही है।


योजना का प्रभाव एवं लाभ

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना ने कई तरह से बच्चों तथा बाल विकास-परिस्थिति पर सकारात्मक असर डाला है:

  1. प्रतिभा पहचान: देश भर के विभिन्न राज्यों एवं सामाजिक-पार्श्वभूमि के बच्चों को मंच मिला जहाँ वे अपनी प्रतिभा दिखा सके। इससे बच्चों को यह एहसास हुआ कि सिर्फ पाठ्यपुस्तकीय सफलता ही नहीं बल्कि रचनात्मक प्रतिभा भी मायने रखती है।
  2. रचनात्मकता को बढ़ावा: योजना ने बच्चों को सोचने-बनाने-प्रस्तुत करने की प्रक्रिया अपनाने के अवसर दिए। इससे उनके भीतर विविध सोच और समस्या-समाधान की क्षमता विकसित हुई।
  3. समावेशी दृष्टि: योजना में विशेष रूप से यह व्यवस्था थी कि विभिन्न सामाजिक-भूगोलिक क्षेत्रों (ग्रामीण/शहरी) के बच्चों को भाग लेने का अवसर मिले। इससे प्रतिभा की खोज अधिक व्यापक हुई।
  4. मूल्यांकन एवं प्रेरणा: चयन प्रक्रिया की गंभीरता ने बच्चों में चुनौती स्वीकार करने, समूह में काम करने और नवोन्मेषी दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा दी।
  5. शैक्षिक एवं सामाजिक मान्यता: पुरस्कार मिलने से बच्चों को, उनके अभिभावकों को तथा विद्यालय-परिसरों को उस बच्चे की उपलब्धि के प्रति सम्मान मिला। इससे उनके अगले कदमों में आत्मविश्वास बढ़ा।
  6. शिक्षा-प्रवर्तन में नवीनता: कई बाल भवनों एवं राज्य-बाल भवनों ने इस प्रक्रिया के तहत रचनात्मक गतिविधियाँ, कार्यशालाएँ एवं शिविर आयोजित किए। इस कार्य-प्रणाली ने बाल शिक्षा को सिर्फ किताबी मोडल से हटाकर अनुभवात्मक दिशा दी।

चुनौतियाँ एवं सीमाएँ

हालाँकि राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना अनेक फायदे लायी, फिर भी कुछ चुनौतियाँ तथा सीमाएँ सामने आईं:

  • वित्तीय एवं संसाधन-सीमाएँ: देश के कई बहुत दूरस्थ या आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में बाल भवनों, केंद्रों या सही संसाधनों का अभाव था। इससे कुछ प्रतिभाशाली बच्चों तक योजना की पहुँच सीमित रही।
  • अत्यधिक प्रतिस्पर्धा एवं रणनीतिक भागीदारी: जैसे-जैसे चयन प्रक्रिया बढ़ी, कुछ स्थानों पर यह प्रतिस्पर्धात्मक मोड़ ले लेकर बच्चों पर अधिक दबाव का कारण बनी। मूल उद्देश्य “रचनात्मक विकास” था, लेकिन कभी-कभी यह “प्रतिद्वंद्विता” में बदल जाता था।
  • सूचना एवं जन-जागरूकता की कमी: योजना की जानकारी कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त नहीं पहुँच पाई, विशेष रूप से ग्रामीण-क्षेत्रों में। इस वजह से प्रतिभाशाली बच्चों को नामांकन का अवसर नहीं मिल पाया।
  • निरंतरता एवं बाद की दिशा: पुरस्कार मिलने के बाद बच्चों के पोषण, आगे के मार्गदर्शन या निरंतर विकास के लिए समुचित व्यवस्था का अभाव देखा गया। पुरस्कार के बाद बच्चे किस तरह आगे बढ़ें — इस पर ठोस समर्थन नहीं हमेशा मौजूद था।
  • योजना का समायोजन एवं समापन: वर्ष 2015 के बाद इस पुरस्कार के अंतर्गत नए चयन नहीं किये गए तथा इसके बाद इसे नए पुरस्कार (उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार) से समेकित कर दिया गया। इससे पुरानी व्यवस्था का आंकलन व सुधार की जरूरत पैदा हुई।

समकालीन स्थिति एवं समेकन

हालाँकि राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना 1995 से सक्रिय रहा, लेकिन विकिपीडिया एवं अन्य स्रोतों के अनुसार इसका अलंकन (एवॉर्डिंग) वर्ष 2015 के बाद नए रूप में नहीं हुआ। बाद में इसे अन्य-पुरस्कार प्रक्रिया में समाहित कर दिया गया — उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार।

इस समेकन के पीछे कारण हो सकते हैं: नई नीति-दृष्टि, पुरस्कारों का पुनर्गठन, संसाधनों का पुनर्वितरण, तथा बच्चों की प्रतिभा-प्रोत्साहन संबंधी रणनीतियों का अद्यतन। यह संकेत करता है कि बाल विकास-क्षेत्र में समय-समय पर नीतिगत एवं कार्यक्रम-संरचनात्मक बदलाव जरूरी होते हैं।


मूल्यांकन एवं सुझाव

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना को संक्षिप्त में देखें तो —

  • यह एक प्रेरणादायक और रचनात्मक पहल थी, जिसने बच्चों को स्वयं को प्रस्तुत करने, नवोन्मेष करने एवं पहचान पाने का अवसर दिया।
  • इसके चयन-मापदण्ड तथा प्रक्रिया ने गुणवत्ता बनाए रखने का प्रयास किया।
  • अनेक बच्चों ने इस मंच के माध्यम से अपने विकास-पथ को सुदृढ़ किया।
  • हालांकि, पहुँच, संसाधन एवं निरंतरता की चुनौतियाँ रहीं।
  • भविष्य में इस तरह की योजनाओं को और अधिक समावेशी,地域 विशिष्ट एवं मार्ग-निर्देशक रूप से विकसित करना चाहिए।

कुछ सुझाव नीचे प्रस्तुत हैं:

  • ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्र में सूचना-प्रसार और अभिकेंद्र (हब्स) बढ़ाए जाएँ ताकि प्रतिभा वहीं से उपज सके।
  • चयनित बच्चों के लिए मेन्टोरशिप–प्रोग्राम हो जहाँ पुरस्कार के बाद भी उनकी सहायता जारी रहे।
  • स्कूल-शिक्षण संस्थाओं में रचनात्मक गतिविधियों को नियमित रूप से शामिल करना चाहिए ताकि “प्रतियोगिता-दृष्टि” के बजाय “विकास-दृष्टि” सक्रिय हो सके।
  • प्रमाण-डेटा एवं प्रभाव-मापन (impact assessment) के माध्यम से यह जाना जाए कि कितना बच्चों का जीवन-पथ इस तरह की पहल से बदला है।
  • नए शैक्षिक एवं तकनीकी संदर्भ में इस तरह की योजनाओं को डिजिटल माध्यम, ऑनलाइन प्लेटफार्म तथा नेटवर्किंग के माध्यम से और सुदृढ़ बनाया जाए।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान योजना ने भारत में बच्चों की रचनात्मक प्रतिभा को पहचान देने और उन्हें आत्मविश्वास व मंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भले ही अब यह पुरानी संरचना में नहीं चल रही हो, इसने यह संदेश दिया कि बच्चों के विकास में सिर्फ किताबी शिक्षा नहीं बल्कि रचनात्मकता, अभिव्यक्ति, नवोन्मेष और व्यक्तिगत पहल का भी स्थान है। भविष्य में इसी प्रकार की योजनाएँ यदि और बेहतर संसाधन, अधिक समावेशी पहुँच और निरंतर समर्थन के साथ लागू की जाएँ, तो बच्चों की संभावनाएँ और व्यापक रूप से उज्जवल हो सकती हैं।


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