इडा बी. वेल्स एक प्रसिद्ध अफ्रीकी-अमेरिकी पत्रकार, समाज सुधारक, शिक्षक और नागरिक अधिकारों की योद्धा थीं। उनका जन्म 16 जुलाई 1862 को मिसिसिपी के होली स्प्रिंग्स में गुलामी के तुरंत बाद हुआ था। उनके माता-पिता, जेम्स और एलिजाबेथ वेल्स, पूर्व दास थे, जिन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा और आत्मसम्मान की भावना देने की ठानी। इडा के बचपन में ही उनके माता-पिता और एक भाई की मृत्यु पीले बुखार की महामारी में हो गई, जिसके बाद उन्होंने केवल 16 वर्ष की उम्र में अपने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी उठाई।

जीवन के कठिन अनुभवों ने इडा को आत्मनिर्भर और दृढ़ बना दिया। उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक की नौकरी की और साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी। जल्द ही उन्हें यह अहसास हुआ कि अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों के साथ हो रहा अन्याय केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर एक व्यापक सच्चाई है। यह अनुभव उन्हें पत्रकारिता की ओर ले गया। उन्होंने अख़बारों में लेख लिखना शुरू किया, जिसमें उन्होंने नस्लीय भेदभाव, लिंचिंग, और अफ्रीकी-अमेरिकियों की सामाजिक स्थिति पर खुलकर लिखा।
1892 में मेम्फिस में उनके तीन मित्रों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के भीड़ द्वारा मार दिया गया। इस निर्मम लिंचिंग ने इडा को झकझोर कर रख दिया। इसके बाद उन्होंने पूरी तरह से लिंचिंग के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। उन्होंने इस मुद्दे पर गहराई से शोध किया और पाया कि अधिकतर मामलों में लिंचिंग का कोई कानूनी या नैतिक आधार नहीं होता था, बल्कि यह श्वेत समुदाय द्वारा अफ्रीकी-अमेरिकियों को डराने और दबाने का एक हथियार था।
इडा ने अपनी खोज और अनुभवों को ‘The Red Record’ नामक पुस्तक में संकलित किया, जिसमें उन्होंने तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर बताया कि लिंचिंग किस तरह एक सामाजिक अन्याय है। उनकी लेखनी तीखी, सटीक और निर्भीक थी। इसी कारण उन्हें अनेक बार धमकियाँ मिलीं। उनका अख़बार ‘फ्री स्पीच’ जला दिया गया और उन्हें जान से मारने की कोशिशें भी की गईं। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा।
उन्होंने अमेरिका के अलावा इंग्लैंड और अन्य देशों का भी दौरा किया और वहाँ के लोगों को अमेरिका में हो रहे नस्लीय अत्याचारों से अवगत कराया। वे पहली अफ्रीकी-अमेरिकी महिलाओं में से थीं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नस्लीय समानता की मांग की। उन्होंने महिलाओं के मताधिकार आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अफ्रीकी-अमेरिकी महिलाओं के लिए विशेष संगठनों की स्थापना की।
उनकी शादी प्रसिद्ध वकील और पत्रकार फर्डिनेंड बार्नेट से हुई, और वे चार बच्चों की माँ बनीं। पारिवारिक जीवन के साथ-साथ उन्होंने सामाजिक संघर्ष को कभी पीछे नहीं छोड़ा। वह जीवन भर अन्याय के विरुद्ध खड़ी रहीं और लोगों को सशक्त करने का प्रयास करती रहीं। उन्होंने अनेक सामाजिक संगठनों की स्थापना की, जिनमें ‘नेशनल एसोसिएशन ऑफ कलर्ड वीमेन’ और ‘NAACP’ की नींव में भी उनका योगदान रहा, हालांकि उनका नाम इस संगठन के संस्थापकों की सूची में औपचारिक रूप से नहीं जोड़ा गया।
इडा बी. वेल्स एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपने लेखों, भाषणों और आंदोलनों से अमेरिका में सामाजिक चेतना की लहर पैदा की। वे पत्रकारिता को केवल एक पेशा नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम मानती थीं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस और सच्चाई के साथ खड़ा होने से बड़े से बड़ा अन्याय भी चुनौती बन जाता है।
25 मार्च 1931 को उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। 2020 में उन्हें मरणोपरांत पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके पत्रकारिता में योगदान का एक ऐतिहासिक सम्मान है। आज इडा बी. वेल्स को अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की प्रतीक के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन संघर्ष, संकल्प और सेवा की एक मिसाल है, जिसने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दी है।