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भारतीय न्यायपालिका: आरक्षण के ऐतिहासिक निर्णय (58)

भारतीय न्यायपालिका ने आरक्षण के संबंध में कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं, जो सामाजिक न्याय, समता और संवैधानिक प्रावधानों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं। 1951 से 2022 तक, इन फैसलों ने आरक्षण नीतियों के क्रियान्वयन और उनके कानूनी पक्षों को स्पष्ट किया है। इस लेख में, हम इन महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों की सूची और उनके प्रभाव का विश्लेषण करेंगे।


आरक्षण और भारतीय संविधान का दृष्टिकोण

आरक्षण की आवश्यकता

भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता के कारण ऐतिहासिक रूप से कई वर्ग शिक्षा, रोजगार, और अन्य
अवसरों से वंचित रहे। इन वर्गों के उत्थान के लिए आर.क्षण को एक साधन के रूप में लागू किया गया।

आरक्षण

संविधान में आरक्षण की व्यवस्था

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 330, और 332 के तहत पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST), और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।


संवैधानिक पीठ के प्रमुख निर्णय

1951: चंपकम दोरैराजन बनाम राज्य

इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 15(1) किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकता है। इसके परिणामस्वरूप पहला संविधान संशोधन किया गया और अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया, जिसमें पिछड़े वर्गों के लिए आर.क्षण का प्रावधान है।

1963: बालाजी बनाम मैसूर राज्य

इस मामले में कोर्ट ने यह निर्धारित किया कि आर.क्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

1973: केशवानंद भारती मामला

हालांकि यह मामला आर.क्षण से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं था, लेकिन इसमें यह स्पष्ट किया गया कि संविधान का मूल ढांचा अपरिवर्तनीय है।


1992 का इंद्रा साहनी निर्णय (मंडल आयोग केस)

मंडल आयोग की सिफारिशें

मंडल आयोग ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में OBC के लिए 27% आर.क्षण की सिफारिश की थी।

50% सीमा का निर्धारण

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आर.क्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। इस निर्णय ने आर.क्षण के ढांचे को स्थायित्व प्रदान किया।


2006: नागराज मामला

पदोन्नति में आरक्षण

इस फैसले में न्यायालय ने SC/ST वर्ग को पदोन्नति में आर.क्षण का प्रावधान दिया, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें निर्धारित कीं।

योग्यता और दक्षता का सवाल

कोर्ट ने कहा कि आरक्षण योग्यता और दक्षता को प्रभावित नहीं कर सकता।


2019: मराठा आरक्षण पर बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय

मराठा समुदाय को आर.क्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यह उचित है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 2021 में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया।


2021: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) का आरक्षण

EWS आर.क्षण के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आर.क्षण प्रदान किया गया। इस पर भी न्यायिक विवाद हुआ, लेकिन यह संविधान के 103वें संशोधन द्वारा लागू किया गया।


अन्य महत्वपूर्ण निर्णय

पदोन्नति में आरक्षण और SC/ST वर्ग

पदोन्नति में आर.क्षण को लेकर कई फैसले हुए, जैसे कि राजेश्वर सिंह केस, जिसने इस विषय पर विस्तृत दिशा-निर्देश दिए।

राज्य द्वारा आरक्षण की सीमा बढ़ाने के प्रयास

राज्य सरकारों द्वारा 50% सीमा से अधिक आर.क्षण प्रदान करने के प्रयासों को बार-बार न्यायालय ने खारिज किया।


आरक्षण से जुड़े मुद्दे और विवाद

सामाजिक असमानता

आर.क्षण नीति का उद्देश्य सामाजिक असमानता को कम करना है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियां सामने आईं।

आरक्षण और योग्यता का प्रश्न

आर.क्षण के विरोधी तर्क देते हैं कि यह योग्यता पर आधारित प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है।


निष्कर्ष

1951 से 2022 तक, भारतीय न्यायपालिका ने आर.क्षण के संबंध में कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं, जिन्होंने सामाजिक न्याय और संविधान के मूलभूत ढांचे के बीच संतुलन बनाने में मदद की। हालांकि, आरक्षण नीति अभी भी विवादास्पद बनी हुई है और इसका क्रियान्वयन सतर्कता की मांग करता है।

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